BA Semester-1 Manovigyan - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2630
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान के प्रश्नोत्तर

प्रश्न- व्यक्ति के विकास की व्याख्या फ्रायड ने किस प्रकार दी है? संक्षेप में बताइए।

अथवा
फ्रायड द्वारा प्रतिपादित मनोलैंगिक विकासात्मक अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

व्यक्तित्व का विकास

फ्रायड ने व्यक्तित्व विकास की व्याख्या दो दृष्टिकोणों से की है। पहला दृष्टिकोण इस बात पर बल डालता है कि वयस्क व्यक्तित्व बाल्यावस्था के भिन्न-भिन्न तरह की अनुभूतियों द्वारा नियंत्रित होता है। दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार जन्म के समय लैंगिक ऊर्जा बच्चों में मौजूद होती है जो विभिन्न मनोलैंगिक अवस्थाओ से होकर विकसित होती है। फ्रायड के इस दूसरे दृष्टिकोण को मनोलैंगिक विकास का सिद्धान्त' कहा जाता है। इस सिद्धान्त की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. मनोलैंगिक विकास की पाँच अवस्थाएँ होती हैं और इनमें से प्रथम तीन तथा अन्तिम अवस्था में एक स्वतन्त्र कामुकता क्षेत्र उत्पन्न होता है।

2. मनोलैंगिक सिद्धान्त के अनुसार मानव विकास का मुख्य बल लैंगिक मूलप्रवृत्ति होता है जो प्रारम्भिक विकासात्मक वर्षों में कामुकता क्षेत्र से विकसित होता है।

फ्रायड द्वारा प्रतिपादित मनोलैंगिक विकास के सिद्धान्त की पाँच अवस्थाएँ क्रम से निम्नाकित हैं-

(i) मुखावस्था -मुखावस्था मनोलैंगिक विकास की पहली अवस्था है जो जन्म से लेकर करीब-करीब 1 साल की उम्र तक होती है। इस अवस्था का कामुकता क्षेत्र मुँह होता है। फलस्वरूप बच्चा मुँह द्वारा की जाने वाली क्रियायें जैसे- चूसना, निगलना, जबड़े से कोई चीज दबाना या जबडे में दाँत निकल आने पर दाँत से दबाना आदि लैंगिक सुख प्राप्त करता है। फ्रायड के अनुसार इस अवस्था पर अधिक या कम मात्रा में मुखवर्ती उत्तेजन होने से वयस्कावस्था में दो तरह के व्यक्तित्व विकसित होते हैं - मुखवर्ती निष्क्रिय व्यक्तित्व वाले व्यक्ति, आशावादी होते हैं तथा उन्हें दूसरे व्यक्तियों पर विश्वास अधिक होता है। इनमें निष्क्रियता तथा दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता का शीलगुण पाया जाता है। मुखवर्ती आक्रामक व्यक्तित्व वाले व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर अधिक प्रभुत्व दिखलाते हैं तथा उनका बुरी तरह से शोषण भी करते हैं।

(ii) गुदावस्था - यह अवस्था पहले साल के समाप्ति से दूसरे साल की अवधि तक रहती है। इस अवस्था में कामुकता क्षेत्र मुँह से हटकर शरीर के गुदा क्षेत्र में आ जाता है, जिनमें बच्चे मल-मूत्र

त्याग करने से सम्बन्धित क्रियाओं से आनन्द उठाते हैं। इस अवस्था पर अधिक या कम उत्तेजना होने पर वयस्कावस्था में दो तरह के व्यक्तित्व विकसित होते हैं - गुदा आक्रामकता व्यक्तित्व में क्रूरता, विनाशिता, विद्वेष, क्रमहीनता आदि शीलगुणों की प्रधानता होती है तथा गुदा-धारणात्मक व्यक्तित्व में हठ, कंजूसी, क्रमबद्धता तथा समयनिष्ठा आदि के गुणों की प्रधानता होती है।

(iii) लिंग प्रधानावस्था - मनोलैंगिक विकास की यह तीसरी अवस्था होती है जो जीवन के चौथे से पाँचवें साल के दौरान की अवस्था है। इस अवस्था के कामुकता क्षेत्र जनानेन्द्रियां होती है। लडकियों की जनानेन्द्रियों को योनि तथा लड़कों के जनानेन्द्रियों को शिश्न कहा जाता है। फ्रायड का कहना था कि इस अवस्था में प्रत्येक लड़के में मातृ-मनोग्रन्थि तथा प्रत्येक लड़की में पितृ-मनोग्रन्थि विकसित होती है। इन मनोग्रन्थियों का सफलतापूर्वक समाधान होने से लड़का तथा लड़की में नैतिकता विकसित होती है, परन्तु ठीक ढंग से समाधान नहीं होने पर उसका कुप्रभाव वयस्क व्यक्तित्व पर सीधा पड़ता है। फ्रायड के अनुसार जो लड़का शैशवावस्था पर आबद्ध होते हैं, उनमें वयस्क होने पर व्यक्तित्व के अन्य शीलगुणों में उतावलापन, शेखीबाजी, उच्चाकांक्षा आदि शीलगुणों की प्रधानता होती है, जो लड़की शैशवावस्था पर आबद्ध होती है। उनमें वयस्क होने पर व्यक्तित्व के अन्य शीलगुणों में इश्कबाजी, सम्मोहकता तथा स्वच्छन्द संभोगिता आदि शीलगुणों की प्रधानता होती है।

(iv) अव्यक्तावस्था मनोलैंगिक विकास की यह चौथी अवस्था है जो लिंगप्रधानावस्था के बाद प्रारम्भ होती है। यह अवस्था 6 या 7 साल के उम्र से प्रारम्भ होकर लगभग 12 वर्ष की आयु तक रहती है। इस अवस्था में बच्चे में कोई नया कामुकता क्षेत्र विकसित नहीं होता है तथा साथ-ही-साथ लैंगिक इच्छाएँ भी सुसुप्त हो जाती हैं अर्थात् लैंगिक इच्छाओं की अभिव्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार के अलैंगिक क्रियाओं जैसे- शिक्षा, चित्रकारी, खेल-कूद आदि के रूप में होती है।

(v) जननेन्द्रियावस्था - मनोलैंगिक विकास की यह अन्तिम अवस्था है जो 13 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होकर निरन्तर चलती रहती है। इस अवस्था में किशोरावस्था तथा प्रौढावस्था दोनों ही सम्मिलित होती हैं। इस अवस्था में किशोर एवं किशोरियों में अनेक तरह के शारीरिक परिवर्तन होते हैं तथा ग्रन्थीय विकास परिपक्व हो जाते हैं। इस अवस्था के प्रारम्भ के कुछ वर्ष जो किशोरावस्था के वर्ष होते हैं, में व्यक्तियों में अपने ही लिंग के व्यक्तियों के साथ रहने, उठने-बैठने एवं बातचीत करने की प्रवृत्ति अधिक तीव्र होती है। इसे फ्रायड ने समलिंगकामुकता कहा है। इस अवस्था में व्यक्ति का व्यक्तित्व शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक रूप से परिपक्व हो जाता है और वह सामाजिक रूप से अनुमोदित लैंगिक सम्बन्ध स्थापित कर एक सतोषजनक जिन्दगी की ओर अग्रसर होता है।

स्पष्ट है कि मनोलैंगिक अवस्थाओं से होकर व्यक्ति की लैंगिक ऊर्जा का धीरे-धीरे विकास होता जाता है, जिससे व्यक्ति बाल्यावस्था की निष्क्रियता को त्यागकर वयस्कावस्था में सामाजिक रूप से उपयोगी एवं सुखमय जीवन जीता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिये। इसके लक्ष्य बताइये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान के उपागमों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- व्यवहार के मनोगतिकी उपागम को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- व्यवहारवादी उपागम क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- संज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्य से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- मानवतावादी उपागम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- मनोविज्ञान की उपयोगिता बताइये।
  8. प्रश्न- भगवद्गीता में मनोविज्ञान को किस प्रकार समाहित किया है? उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- सांख्य दर्शन में मनोविज्ञान को किस प्रकार व्याख्यित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  10. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में मनोविज्ञान किस प्रकार परिभाषित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  11. प्रश्न- मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान की निरीक्षण विधि का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  13. प्रश्न- मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए इसकी विधियों पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की गणना विधियों का वर्णन कीजिए। कोटि अंतर विधि का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की दिशाएँ बताइये।
  17. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक के निर्धारक बताइये तथा इसका महत्व बताइये।
  18. प्रश्न- जब {D2 = 36 है तथा N = 10 है तो स्पीयरमैन कोटि अंतर विधि से सह-सम्बन्ध निकालिये।
  19. प्रश्न- सह सम्बन्ध गुणांक का अर्थ क्या है?
  20. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के किन्ही दो सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए
  22. प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  24. प्रश्न- चयनात्मक अवधान तथा दीर्घीकृत अवधान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  26. प्रश्न- क्लासिकी अनुबन्धन सिद्धान्त का विवेचन कीजिए तथा प्राचीन अनुबन्धन के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- क्लासिकल अनुबंधन तथा क्लासिकल अनुबंधन को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  28. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन का अर्थ और उसकी आधारभूत प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अधिगम अन्तरण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइये।
  30. प्रश्न- शाब्दिक सीखना से आप क्या समझते हैं? शाब्दिक सीखने के अध्ययन में उपयुक्त सामग्रियाँ बताइए।
  31. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिये।
  32. प्रश्न- शाब्दिक सीखना में स्तरीय विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है?
  33. प्रश्न- शाब्दिक सीखना की संगठनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्त्व बताइये।
  35. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन में संज्ञानात्मक कारकों की भूमिका बताइये।
  36. प्रश्न- अधिगम के नियमों का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- परिवर्जन सीखना पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- सीखने को प्रभावित करने वाले कारक।
  39. प्रश्न- स्मृति की परिभाषा दीजिये। स्मृति में सुधार कैसे किया जाता है?
  40. प्रश्न- स्मृति के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- स्मृति में संरचनात्मक एवं पुनर्सरचनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- विस्मरण के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रासंगिक तथा अर्थगत स्मृति से क्या आशय है? इनमें विभेद कीजिये।
  44. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति को संक्षेप में बताते हुये दोनों में विभेद कीजिये।
  45. प्रश्न- 'व्यतिकरण धारण को प्रभावित करता है।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- स्मृति के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। स्मृति को मापने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- विस्मरण के निर्धारक और कारणों का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- संकेत आधारित विस्मरण किसे कहते हैं? विस्मरण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- स्मरण के प्रकार बताइयें।
  50. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति में अन्तर बताइये।
  51. प्रश्न- स्मृति सहायक प्रविधियाँ क्या हैं?
  52. प्रश्न- विस्मरण के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- पुनः प्राप्ति संकेतों के अभाव में किस प्रकार विस्मरण होता है?
  54. प्रश्न- स्मृति लोप क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- विस्मरण के अवशेष-प्रसक्ति समाकलन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।
  56. प्रश्न- ध्यान के कौन-कौन से निर्धारक होते है?
  57. प्रश्न- दीर्घकालीन स्मृति तथा उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- ध्यान की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  59. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  60. प्रश्न- बुद्धि के संज्ञानपरक उपागम से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  63. प्रश्न- 'बुद्धि आनुवांशिकता से प्रभावित होती है या वातावरण से। स्पष्ट कीजिये।
  64. प्रश्न- बुद्धि को परिभाषित कीजिये। इसके विभिन्न प्रकारों तथा बुद्धिलब्धि के प्रत्यय का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार बताइये।
  66. प्रश्न- वंशानुक्रम तथा वातावरण बुद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
  67. प्रश्न- संस्कृति परीक्षण को किस प्रकार प्रभावित करती है?
  68. प्रश्न- परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या से क्या आशय है?
  69. प्रश्न- उदाहरण सहित बुद्धि-लब्धि के प्रत्यन को स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- बुद्धि परीक्षणों के उपयोग बताइये।
  71. प्रश्न- बुद्धि लब्धि तथा विचलन बुद्धि लब्धि के अन्तर को उदाहरण सहित समझाइए।
  72. प्रश्न- बुद्धि लब्धि व बुद्धि के निर्धारक तत्व बताइये।
  73. प्रश्न- गार्डनर के बहुबुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- थर्स्टन के समूह कारक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त के आधार पर बुद्धि की व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयुक्त परिभाषा देते हुए इसके अर्थ को स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- व्यक्तित्व कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण किस प्रकार किया है?
  79. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  80. प्रश्न- व्यक्तित्व पर ऑलपोर्ट के योगदान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- कैटेल द्वारा बताए गए व्यक्तित्व के शीलगुणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  82. प्रश्न- व्यक्ति के विकास की व्याख्या फ्रायड ने किस प्रकार दी है? संक्षेप में बताइए।
  83. प्रश्न- फ्रायड ने व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या किस आधार पर की है?
  84. प्रश्न- व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- व्यक्तित्व के मानवतावादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- व्यक्तित्व के शीलगुणों का वर्णन कीजिये।
  88. प्रश्न- प्रजातान्त्रिक व्यक्तित्व एवं निरंकुश व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिये।
  89. प्रश्न- शीलगुण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  90. प्रश्न- शीलगुण उपागम में 'बिग फाइव' (OCEAN) संप्रत्यय की संक्षिप्त व्याख्या दीजिए।
  91. प्रश्न- प्रेरणा से आप क्या समझते हैं? आवश्यकता, प्रेरक एवं प्रलोभन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- विभिन्न शारीरिक एवं सामाजिक मनोजनित प्रेरकों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- प्रेरणाओं के संघर्ष से आप क्या समझते हैं? इसके समाधान करने के तरीकों पर प्रकाश डालिये।
  94. प्रश्न- आवश्यकता-अनुक्रमिकता से क्या तात्पर्य है? मैसलो के अभिप्रेरणा सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  95. प्रश्न- उपलब्धि प्रेरक एक प्रमुख सामाजिक प्रेरक है। स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- “बाह्य अभिप्रेरण देने से आन्तरिक अभिप्रेरण में कमी आती है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  97. प्रश्न- जैविक अभिप्रेरकों के दैहिक आधार का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- आन्तरिक प्रेरणा क्या है और यह किस प्रकार कार्य करती है?
  99. प्रश्न- दाव एवं खिंचाव तंत्र अभिप्रेरित व्यवहार में किस प्रकार कार्य करता है?
  100. प्रश्न- जैविक और सामाजिक प्रेरक।
  101. प्रश्न- जैविक तथा सामाजिक अभिप्रेरकों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  102. प्रश्न- आन्तरिक एवं बाह्य अभिप्रेरण क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- प्रेरणा चक्र पर टिप्पणी लिखो।
  104. प्रश्न- अभिप्रेरणात्मक व्यवहार के मापदण्ड बताइये।
  105. प्रश्न- पशु प्रणोद की माप का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- संवेग से आप क्या वर्णन कीजिये। समझते हैं? इसकी विशेषतायें तथा इसके विकास की प्रक्रिया का
  107. प्रश्न- सांवेगिक अवस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
  108. प्रश्न- संवेग के जेम्स लांजे सिद्धान्त तथा कैनन बार्ड सिद्धान्त का तुलनात्मक विवरण दीजिये।
  109. प्रश्न- संवेग शैस्टर-सिंगर सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।
  110. प्रश्न- संवेग में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  111. प्रश्न- संवेगों पर किस प्रकार नियंत्रण कर सकते हैं? स्पष्ट कीजिये।
  112. प्रश्न- 'पॉलीग्राफिक विधि झूठ को मापने की उत्तम विधि है। स्पष्ट कीजिये।
  113. प्रश्न- संवेग के
  114. प्रश्न- संवेग के कैननबार्ड सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा उनकी मानसिक योग्यता सामान्य छात्रों से कम होती है।
  115. प्रश्न- सार्वभौमिक एवं विशिष्ट संस्कृति संवेग की अभिवृत्ति के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  116. प्रश्न- गैल्वेनिक त्वक् अनुक्रिया का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- संवेग के आयामों को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले बाह्य शारीरिक परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  120. प्रश्न- झूठ संसूचना से क्या आशय है?
  121. प्रश्न- संवेग तथा भाव में अन्तर बताइये।
  122. प्रश्न- संवेग के मापन की कोई दो विधियाँ बताइये।

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